बैतूल ( ख़बरम डॉट कॉम) जबलपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद बैतूल के शाहपुर तहसील मुख्यालय की सरपंच मंगीता बाई का एक बार फिर सरपंच बने रहना तय हो गया है। हाई कोर्ट ने मंगीता बाई के खिलाफ किये गए एसडीएम शाहपुर और कमिश्नर नर्मदापुरम संभाग के आदेशों को अपास्त कर दिया है। इसके साथ ही राजनैतिक वर्चस्व की इस लड़ाई में जहां सरपंच चुनी गई मंगीता बाई की बड़ी जीत हुई है तो वही उनके धुर विरोधी भाजपा खेमे उप सरपंच अमित महतो और नीरज पांडे खेमे को शिकस्त का मुह देखना पड़ा है।
हाई कोर्ट जबलपुर के माननीय न्यायाधीश श्री सुबोध अभ्यंकर द्वारा दिये गए निर्णय में मंगीता बाई के विरुद्ध दिए गए आदेशो को अपास्त किया गया है। अदालत ने अपने आदेश में आर्टिकल 3(2) का क्रियान्वयन न होना माना है। जिसके तहत सभी निर्वाचन याचिकाएं न्यायालय के समक्ष एक साथ प्रस्तुत की जानी थी।
यह है मामला
शाहपुर में 13 जनवरी 2015 को हुए चुनाव में सरपंच निर्वाचित हुई मंगीता बाई के खिलाफ प्रतिद्वंदी प्रत्यासी ललित बारस्कर ने उनकी जाति प्रमाण पत्र को लेकर एसडीएम शाहपुर के समक्ष याचिका प्रस्तुत की थी। ललित के मुताबिक मंगीता बाई ने जो दस्तावेज प्रस्तुत किये थे। उनके फर्जी होने का लेख किया था।
यह थी शिकायत
शिकायत के मुताबिक मंगीता बाई ने आदिवासी के लिए आरक्षित पद के लिए चुनाव लड़ा था। जिसमे प्रस्तुत किये गए जाति प्रमाण पत्र में पिता की जगह विशाल सिंह के नाम का उल्लेख था जबकि निर्वाचन शपथ पत्र में विशाल को पति बताया गया था।
निर्वाचन शून्य हुआ था घोषित
तत्कालीन एसडीएम पंकज विजयवर्गीय ने 31 मई 2017 को मंगीता बाई का निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया था। जिस पर कमिश्नर कोर्ट में की गई अपील में भी उनका आवेदन खारिज कर दिया गया था। जिस पर उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने इस त्रुटि को लिपिकीय गलती होना बताया था।
गोकुल उईके बने थे प्रभारी सरपंच
पंचायत के कार्यो का संचालन करने के लिए यहां पंचों के बीच से चुने गए गोकुल उइके को आदिवासी होने की वजह से प्रतिनिधित्व देते हुए 6 माह के लिए अस्थाई तौर पर प्रभारी सरपंच मनोनीत किया गया था।
छानबीन समिति में गया है मामला
आदिवासी ,गैर आदिवासी इश्यू मानते हुए एसडीएम शाहपुर ने मंगीता बाई के जाति प्रमाण पत्र के इस मामले को राज्यस्तरीय छानबीन समिति को भेज दिया था।जहां यह मामला अभी भी लंबित है। समिति को भेजने के साथ ही मंगीता बाई के निर्वाचन को शून्य भी घोषित किया गया था। यही वजह है कि जिस समय यह कार्रवाई की गई। इसे सांसद ज्योति धुर्वे के मामले से भी जोड़कर देखा जाने लगा था। हालाकि मंगीता बाई के विरोधी इसे फर्जी जाति प्रमाण पत्र का नही बल्कि फर्जी दस्तावेजों का मामला मानते रहे है और यही वजह है कि वे मंगीता बाई के खिलाफ एफआईआर करवाने की कवायद में जुटे रहे है लेकिन अफसरों की फंसी कलम को बचाने के चक्कर मे ऐसा कुछ नही हो सका है।
राजनैतिक रसूख और वर्चस्व की लड़ाई
मंगीता बाई का यह मामला विधानसभा क्षेत्र में राजनैतिक वर्चस्व की लड़ाई का मामला रहा है।उप सरपंच अमित महतो ,निरज पाण्डे ,कुलदीप चौधरी से लेकर सुरेंद्र राठौर तक मंगीता बाई की खिलाफत करते रहे है। इसकी वजह भाजपा समर्थित और रबर स्टैम्प प्रत्यासी का न चुनकर आना रहा है। विनोद मालवीय को विरोध और उनकी स्वीकार्यता न होना भी इस लड़ाई की खास वजह रही। यह खेमा अब इस मामले में जल्द ही अपील दाखिल करेगा। श्री नीरज पांडे के मुताबिक उनके पास प्रमाणित दस्तावेज है वे न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए अपीलीय न्यायालय में अपील दाखिल करेंगे।
राह नही आसान,आ सकता है अविश्वास
मंगीता बाई के पक्ष में आये इस निर्णय के बावजूद उनके लिए सरपंची की राह आसान नही है। पचो का विरोध जहां उन्हें हरदम झेलना पड़ेगा ।वही विकास और निर्माण कार्यो के लिए रूटीन वर्क से हटकर विशेष फंड लाकर वे शायद ही काम करवा पाएगी।
इस अदालती शिकस्त को दूसरी तरह से जीत में बदलने के लिए विरोधी खेमा मंगीता बाई के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकता है।